1. दिल पे उनकी चोट सहते ही रहे ,
फिर भी अपनी बात कहते ही रहे ,
राह मे रोडा बने पत्थर न कम ,
फिर भी झरने थे कि बहते ही रहे ||
2. कहते हो जिसे राम ये नंदलाल वही है |
सीता का संघाती वही, गोपाल वही है ||1||
उपर की तामझाम से भटको न मेरे यार ?
है माता आमिना का ये जो लाल वही है ||2||
3. उनके आने की खबर आई मगर |
वे पडे मुझको न दिखलाई मगर||1||
उनके दरवाजे पर दस्तक भी दिया |
हो सकी मेरी न सुनवाई मगर ||2||
अब अलग उनकी राह है |
चाह मे क्या कमी आई मगर ||3||
रात हो, दिन हो, सुबह हो, शाम हो |
याद आते आंख भर आई मगर ||4||
दूर वे मुझसे है, मै भी दूर हू|
डोलती है साथ परछाई मगर ||5||
सच है कुछ अनुबंध हमने थे किए |
हो न पाई उसकी भरपाई मगर ||6||
4. सबकी कोशिश है कि तुमको जान ले |
चाहती दुनिया तुम्हे पहचान ले || 1||
किंतु तुम अब तक अपरिचित ही रहे|
लोग जो चाहे समझ ले, मान ले ||
ज्ञात जो सम्बंध सागर – बूंद का |
तो क्यो ना उसका सही संज्ञान ले ||
मै तो हरपल हू, उसे एहसासता |
,मात्र वह एहसास है,यह जान ले ||
अरध – ऊरध मे, अगल मे बगल में |
सब जगह वो हैं, कहां प्रस्थान लें||
वो असीम,ससीम मैं, फिर क्या कहूं |
मेरी क्या औकात ? खुद अनुमान लें ||
5. आज तक उनसे मुकाबिल न हुआ |
लगता, मै मिलने के काबिल न हुआ ||
आदमी हूं, है कमी मुझमें मगर |
उनसे बे – रूख ये मेरा दिल न हुआ ||
छोडकर उनकी गली का रास्ता |
गैर की महफिल मे शामिल न हुआ ||
एक त्रेता में हुआ, ‘मैं’ दूसरा |
तीसरा कोई अजामिल न हुआ ||
मेरे दिल में उनके बस जाने के बाद |
दूसरा कोई भी दाखिल न हुआ ||
खो दिया दिया जीवन गुणा औ भाग में |
अन्त में कुछ भी तो हासिल न हुआ ||
6. छवि की दिव्य छटा फैलाए तुम्हे देखता हू |
उपर – नीचे, दायें – बायें तुम्हे देखता हू ||
मेरे प्राणो मे धडकन – सिहरन बन समा रहे |
अमा – बीच चंद्र्मा बसाए तुम्हे देखता हू ||
तेरी याद सताती, तुमको भूल नही पाता |
सभी ओर बाहें फैलाए तुम्हे देखता हू ||
नै हो चुका तुम्हारा जग से क्या लेना – देना |
अब कोई भी आए – जाए तुम्हे तुम्हे देखता हू ||
चाह रहा तेरी छाया मे जीना औ मरना |
आंसू के सौगात सजाए तुम्हे देखता हू ||
7. उनकी नजरो का इशारा हो गया |
जिंन्दगी भर का सहारा हो गया ||
हूं प्रवासी मैं, न कुछ मेरा यहां |
फिर भी अपना गाव सारा हो गया ||
साथ मे मेरे विरोधी थे सभी |
पर विरोधो मे गुजारा हो गया ||
जिसमे हम बंदी बनाए थे गए |
बंदीगृह वो हमको प्यारा हो गया ||
दूर भी हैं वे, निकट भी हैं वही |
आज इसका वारा – न्यारा हो गया ||
8. जिन्दगी का तार बज रहा |
खुशनुमा सितार बज रहा ||
जब से हम यहां है आ बसे |
तब से बार – बार बज रहा ||
है तो राम एक ही मगर |
राग पर, हज़ार बज रहा ||
सुबहो शाम सोते – जागते |
रात – दिन के पार बज रहा ||
रस उडेलता जहान मे |
सब तरफ है यार ! बज रहा ||
शीत उष्ण, जन्म – मृत्यु की |
डालता फुहार बज रहा ||
जाडा, गर्मी, वर्षा हो, बसंत |
रोज लगातार बज रहा ||
9. होने को मेरी उनसे मुलाकात तो हुई |
वो बात नही हुई मगर बात तो हुई ||
बुझ सकी ना प्यास पपीहे की सही है |
होने को मगर जोर की बरसात तो हुई ||
तारे भी रहे, चांद रहा, चांदनी रही |
आई न भले नींद मगर रात तो हुई ||
संघर्ष नही हमने किया खुद ही किसी से |
संघर्ष कराने की खुराफात तो हुई ||
खुद हमको खुदा है न मिला, औ न मिलेगा |
पर उसके फरिश्तो से मुलाकात तो हुई ||
10. निगाहें चार करना चाहते हो, किसी से प्यार करना चाहते हो |
गले मे बांधकर चट्टान भारी, समुंदर पार करना चाहते हो ||
लबादा ओढकर मजहब – धरम क, समजोद्धार करना चाहते हो |
सियासत को बना व्यवसाय साथी ! नया व्यापार करना चाहते हो ||
11. खुद से लडने मे पसीना आ गया |
गम पे काबू पा के जीना आ गया ||
अब बहारे चैत फागुन की नही |
जेठ का जलता महीना आ गया ||
ताक मे तूफान बैठे रह गये |
पार सागर के सफीना आ गया ||
तन को अब दुलरा रही ठन्डी हवा |
है निकट लगता मदीना आ गया ||
मय छुआ तक भी, न मयखाना गया |
फिर भी मुझको यार ! पीना आ गया ||
मयकसों के साथ मे रहते हुए |
मुझको पीने का करीना आ गया ||
12. लो खिली तीसी लहकती आ रही |
इत्र की शीशी महकती आ रही ||
रूप के सैलाब मे लहरा रही |
खुद जवानी ही बहकती आ रही ||
चमकती चपला, लरजती दामिनी |
यज्ञ की ज्वाला दहकती आ रही ||
सूर्ख पट के पंख है लहरा रहे |
वो परिंदे – सी चहकती आ रही ||
मन न वश मे है, न सुधि तन की रही |
यम – नियम – संयम गहकती आ रही ||
13. हैं बहुत दिन हुए हमको आये हुए |
काल के गाल मे घर बनाये हुए ||
गल के मारे अकेले हमी तो नही |
और भी तो है गम के सताये हुए ||
‘वक़्त की है कमी’कहना है मात्र छल |
आलसी हैं ये बाधा बनाए हुए ||
गैर का वक़्त हमसे न कम कीमती |
व्यस्तता अपनी हम व्यर्थ गाये हुए ||
14. झूम – झूम कर चली आज पुरवाई सारी रात |
कसमस यौवन लिए कली अगडाई सारी रात ||1||
तारों के सरगम पर रही थिरकती शशिबाला |
नभ ने चांदी चारों ओर लुटायी सारी रात ||2||
दूर देश के मीत ! खिले पंकज की खुशबू – सी |
याद तुम्हारी भीनी – भीनी आई सारी रात ||3||
उसने करवट बदल – बदल पल से समझौता कर |
व्याकुलता छाती पर बांध, बिताई सारी रात ||4||
लेखक – स्व. डा0 शिवनारायण शुक्ल “प्रवक्ता हिंन्दी”
मेरा नाम अपूर्व कुमार है मैंने कम्प्युटर्स साइंस से मास्टर डिग्री हासिल किया है | मेरा लक्ष्य आप लोगो तक हिंदी मे लिखे हुये लेख जैसे जीवन परिचय, स्वास्थ सम्बंधी, धार्मिक स्थलो के बारे मे, भारतीये त्यौहारो से सम्बंधित, तथा सुन्दर मैसेज आदि सुगमता से पहुचाना है. तथा अपने मातृभाषा हिन्दी के लिये लोगो को जागरूक करना है. आप लोग नित्य इस वेबसाइट को पढ़िए. ईश्वर आपलोगो को एक कामयाब इंसान बनाये इसी कामना के साथ मै अपनी वाणी को विराम दे रहा हूँ. अगर हमारे द्वारा किसी भी लेख मे कोई त्रुटि आती है तो उसके लिये मै क्षमाप्रार्थी हूँ. |
हिंन्दी मे सोच पढने लिये आपका बहुत – बहुत धन्यवाद