Chaitra Navratri – चैत्र नवरात्रि 2024 से सम्बंधित समस्त जानकारी

मां दुर्गा का पावन Chaitra Navratri 2024 जल्द ही शुरु होने वाला है। ऐसे मे हर जगह तैयारिया शुरु हो गयी है । हिंदू धर्म मे नवरात्रि का बहुत विशेष महत्व होता है। मां दुर्गा के नवो रूप की आराधना का दिन होता है, लोग व्रत, उपवास, पूजा पाठ भी करते है। जगह – जगह मां के मंदिरो पर धूमधाम से मनाया जाता है।

शायद आप लोगो को पता भी होगा कि नवरात्र साल मे चार बार मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि, शारदीय नवरात्रि को लोग प्रमुख रूप से ज्यादा महत्वपूर्ण मानते है। परंतु दो नवरात्रि और होते है। जिनको गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। गुप्त नवरात्रि का भी बहुत महत्व है। लेकिन इसके बारे मे सभी को पता नही होता बस कुछ ही लोग जानते है परंतु इस गुप्त नवरात्रि मे की गई मां की साधना तुरंत फलदाई होती है।

इस लेख के जरिए हम आपको चैत्र नवरात्रि से सम्बंधित समस्त जानकारी जैसे Chaitra Navratri कब है?, नवरात्रि पर निबंध (Essay on Navratri in Hindi) और Navratri Quotes in Hindi के बारे मे आवश्यक जानकारी देनी की कोशिश करुंगा जिससे आप लोगो तक इसकी सही जानकारी पहुंचे।

Chaitra Navratri 2024 – चैत्र नवरात्रि 2024 मे कब है?

माता नवदुर्गा को समर्पित चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल मंगलवार 2024 से शुरु होकर 17 अप्रैल 2024 को खत्म हो रहा है। मां के भक्त माता को खुश करने के लिए विधि – विधान से पूजा अर्चना करते है। चैत्र मास का महत्व भी बहुत होता है। चैत्र मास मौसम का भी मिला – जुला समय है कभी गर्मी और कभी ठंड होती है। और वैसे भी चैत्र मास मे धार्मिक गतिविधिया भी बहुत सक्रिय रहती है।

चैत्र नवरात्रि की शुरुवात कैसे हुई? और क्यो मनाते है?

लोगो के द्वारा मान्यता है। कि महिषासुर को वरदान प्राप्त था कि देव, दानव, मनुष्य, जानवर आदि किसी के द्वारा मृत्यु ना होगी ऐसे ब्रह्मा जी ने आशिर्वाद दिया था। रम्भासुर का पुत्र था महिषासुर बहुत शक्तिशाली और पराक्रमी था। वरदान को पाकर वह अभिमान मे चूर होकर तीनो लोको पर राज करने की सोचने लगा तथा युद्ध करके सबको पराजित कर दिया। उसके इस कृत्य से देवता परेशान हो गये तब देवताओ ने माता से प्रार्थना की, देवताओ की प्रार्थना सुनकर माता ने चैत्र मास मे ही अपने 9 रूपो को प्रकट किया तब देवताओ ने नवरूपो को अपने अनुसार शश्त्र देकर माता को शक्ति संपन्न कर दिया तथा महिषासुर वध के लिए माता से निवेदन किया। तभी से चैत्र का महत्व हो गया।

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नवरात्रि मे क्या करे और क्या ना करें?

नवरात्रि मां दुर्गा को समर्पित हिंदुवो का एक प्रमुख त्योहार है।नवरात्रि मे व्रत उपवास रखने का विधान है। नवरात्र मे साफ सफाई का विशेष ध्यान रखे। कोशिश करे कि आपके द्वारा किसी को दुख ना पहुंचे। तन, मन, वचन, कर्म और वाणी से आप पवित्र रहें तभी आपको सम्पूर्ण फल की प्राप्ति होगी तथा माता का आशिर्वाद प्राप्त होगा। नवरात्र मे समय से उठ जाना चाहिए। अगर आप माता भक्त है। तो नवरात्र के दिनो मे मांस, मदिरा आदि के सेवन से बचना चाहिए।

चैत्र नवरात्रि घटस्थापना का शुभ मुहूर्त

घटस्थापना का शुभ मुहूर्त 9 मार्च 2024 को सुबह 9 बजकर 12 मिनट से दोपहर 1 बजकर 58 मिनट तक रहेगा। क्योंकि प्रातः काल सूर्योदय से ही रोग एवं उद्वेग की चौघड़िया 9 बजकर 12 मिनट तक है इसके पश्चात क्रमशः चल, लाभ एवं अमृत की चौघड़िया रहेगी।

पूजा विधि

1 – सर्वप्रथम सुबह उठकर घर की सफाई करे उसके बाद स्नान आदि करके अपने मंदिर की साफ सफाई सही तरीके से कर लें।

2 – मंदिर को गंगाजल छिडक कर शुद्ध कर लें।

3 – उसके बाद विधि – विधान तरीके से किसी योग्य पंडित के द्वारा कलश स्थापना करवायें।

4 – कलश स्थापना के बाद मां को वष्त्र, फल, मिठाई, सिंदूर, लाल पुष्प सिंगार के सामान आदि समर्पित करें।

5 – उसके बाद अपनी सामर्थ अनुसार माता के मंत्रो का पाठ करे तत्पश्चात आरती करके पूजा का समापन करें।

नवरात्रि मे करें दुर्गा चालीसा पाठ

नवरात्रि मे दुर्गा चालीसा का पाठ बहुत फल प्रदान करने वाला होता है। अत: नवरात्र मे माता के दुर्गा चालीसा का पाठ जरुर करना चाहिए –

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श्री दुर्गा चालीसा – Durga Chalisa

नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।
नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।
तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥

शशि ललाट मुख महाविशाला ।
नेत्र लाल भृकुटी बिकराला ॥

रूप मातु को अधिक सुहावे ।
दरश करत जन अति सुख पावे ॥

तुम संसार शक्ति लय कीना ।
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥

अन्नपूर्णा तुम जग पाला ।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥

प्रलयकाल सब नाशनहारी ।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥

शिव योगी तुम्हरे गुन गावें ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥

रूप सरस्वती का तुम धारा ।
दे सुबुधि ऋषि-मुनिन उबारा ॥

धर्योब रूप नरसिंह को अम्बा ।
परगट भईं फाड़ कर खम्बा ॥

रक्षा करि प्रहलाद बचायो ।
हिरनाकुश को स्वर्ग पठायो ॥

लक्ष्मी रूप धरो जग जानी ।
श्री नारायण अंग समानी ॥

क्षीरसिन्धु में करत बिलासा ।
दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
महिमा अमित न जात बखानी ॥

मातंगी धूमावति माता ।
भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ॥

श्री भैरव तारा जग-तारिणि ।
छिन्न-भाल भव-दुःख निवारिणि ॥

केहरि वाहन सोह भवानी ।
लांगुर वीर चलत अगवानी ॥

कर में खप्पर-खड्ग- बिराजै ।
जाको देख काल डर भाजै ॥

सोहै अस्त्र विविध त्रिशूला ।
जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥

नगरकोट में तुम्हीं बिराजत ।
तिहूँ लोक में डंका बाजत ॥

शुम्भ निशुम्भ दैत्य तुम मारे ।
रक्तबीज-संखन संहारे ॥

महिषासुर दानव अभिमानी ।
जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥

रूप कराल कालिका धारा ।
सेन सहित तुम तेहि संहारा ॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब ।
भई सहाय मातु तुम तब तब ॥

अमर पुरी अरू बासव लोका ।
तव महिमा सब रहें अशोका ॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी ॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावै ।
दुख-दारिद्र निकट नहिं आवै ॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।
जन्म-मरण ता कौ छुटि जाई ॥

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योगी सुर-मुनि कहत पुकारी ।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥

शंकर आचारज तप कीनो ।
काम-क्रोध जीति तिन लीनो ॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
अति श्रद्धा नहिं सुमिरो तुमको ॥

शक्ति रूप को मरम न पायो ।
शक्ति गई तब मन पछितायो ॥

शरणागत ह्वै कीर्ति बखानी ।
जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
तुम बिन कौन हरे दुख मेरो ॥

आशा तृष्णा निपट सतावैं ।
मोह-मदादिक सब बिनसावैं ॥

शत्रु नाश कीजै महरानी ।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥

करहु कृपा हे मातु दयाला ।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला ॥

जब लग जिओं दया फल पावौं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनावौं ॥

दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।
सब सुख भोग परमपद पावै ॥

देवीदास शरण निज जानी ।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥

॥श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्णम ॥

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